Tuesday, October 11, 2016

बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता



सन्दर्भ:
सुन्दरकाण्ड में गोस्वामी जी लिखते हैं कि जब सीताजी की खोज में निकले हनुमान जी की भेंट विभीषण जी से होती है, तब विभीषण जी कहते हैं:

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥सुन्दरकाण्ड 7.4॥
हे हनुमान्‌! अब मुझे विश्वास हो गया कि श्री रामजी की मुझ पर कृपा है, क्योंकि हरि की कृपा के बिना संत नहीं मिलते। 

बालकाण्ड के आरम्भ में गोस्वामी जी संतों की वंदना करते हैं, और सत्संग की महिमा के बारे में लिखते हैं कि:

* मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥बालकाण्ड 3.5॥
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥बालकाण्ड 3.6॥
भावार्थ:-जिसने जिस समय जहाँ कहीं भी जिस किसी यत्न से बुद्धि, कीर्ति, सद्गति, विभूति (ऐश्वर्य) और भलाई पाई है, सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है। 

* बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥3.7॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥3.8॥
भावार्थ:-सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री रामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि (प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है। 

* सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥3.9॥
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥3.10॥
भावार्थ:-दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है), किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात्‌ जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।)। 


उत्तरकाण्ड में गोस्वामी जी लिखते हैं कि भगवान शंकर पार्वती जी को गरुड़ जी और काकभुषुण्डि जी के प्रश्नोत्तर के बारे में बताते हैं और कहते हैं:

गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन।
बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान।।125(ख)।।

भावार्थ:-हे गिरिजे! संत समागम के समान दूसरा कोई लाभ नहीं है। पर वह (संत समागम) श्री हरि की कृपा के बिना नहीं हो सकता, ऐसा वेद और पुराण गाते हैं।

No comments:

Post a Comment