Wednesday, December 28, 2016

राम रक्षा स्तोत्र





राम नाम की महिमा

*देवादिदेव महादेव जी द्वारा राम नाम की महिमा*

***महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?
शिव जी ने अपनी धर्मपत्नी पार्वती जी से कहते हैं की, हे देवी! जो व्यक्ति एक बार *राम* कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ। 🙏🙏🙏

***पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगते हैं?
उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग *राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे। 
शिव जी ने कहा की देखो पार्वती इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो *राम* नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य *राम* नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगो के मुख से *राम* नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ। *राम* नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है। 

***एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से बहुजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थी। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए। शिव जी ने कहा की इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो। 
पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुन्ना चाहती हूँ। 
शिव जी ने बताया, केवल एक बार *राम* कह लो तुम्हे सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। एक *राम* नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया। 

पार्वत्युवाच -
*केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?*
*पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।*
ईश्वर उवाच-
*श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।*

यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ। 

*आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।*
*लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।।*

 भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है। 

*भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।*
*तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।*

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दोसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।  इसीलिए हमारे देश में प्रणाम *राम राम* कहकर किया जाता है। 🙏
*।।राम राम।।*🙏

Saturday, October 29, 2016

धनद कोटि शत सम धनवाना। माया कोटि प्रपंच निधाना।।



धनद कोटि शत सम धनवाना। माया कोटि प्रपंच निधाना।।
भार धरन शत कोटि अहीशा। निरवधि निरुपम प्रभु जगदीशा।।

भगवान् श्रीराम अरबों कुबेरों के समान धनवान हैं और करोड़ों मायाओं के समान जगत् प्रपंच के निधान अर्थात कोश हैं। अरबों शेषनागों के समान भगवान् श्रीराम जगत् का भार धारण कर सकते हैं। प्रभु अवधिरहित और उपमारहित हैं तथा एकमात्र भगवान् श्रीराम ही सर्वशक्तिमान और जीव जगत् के ईश्वर हैं।

Monday, October 17, 2016

बिनु सतसंग बिबेक न होई।

Ram Ram dear friends. 😊🙏 This week's chaupai is:
बिनु सतसंग बिबेक न होई। 
रामकृपा बिनु सुलभ न सोई॥

बिना सत्संग के विवेक नहीं होता और भगवान् श्रीराम की कृपा के बिना वह सत्संग सुलभ नहीं हो पाता।

Friday, October 14, 2016

Namami Bhakta Vatsalam

राम राम 
 
Starting Saturday, October 15 Kartik month is starting. It is one of the most auspicious month for us. 

During this month we offer Ghee Diya to Shri Tulasi Devi and Shri Ramji.
 
We also recite the Stuti during regular Pooja for the whole Kartik month. 

For your convenience, I am sending the text and youtube link for the stuti sung by Guruji.

This stuti is from Sri Ramcharitmanas and is sung by Atri muni when Sri Ramji was about to leave Chitrakoot after residing 12 years.
 
राम राम

Jagadguru Rambhadracharya - Manas Stutis 05 - Namami Bhakta Vatsalam - YouTube

https://m.youtube.com/watch?v=Kw5BXzbsZx0




Wednesday, October 12, 2016

शनि बाधा से मुक्ति -

शनि बाधा से मुक्ति - 
Getting freed of the Malefic of Saturn- 

मत्कृता यां भवेद्बाधा महादुखौध दायिनी।
रामनाम्नो जपोत्साही मुच्यते स्वल्पकालतः॥
Mat-krta yam bhaved-badha maha-dukhaudha dayini 
Rama-namno japotsahi muchyate svalpa-kalatah 

(मेरे कोपके कारण जो महादुख समुह को देने वाली ग्रहबाधा यदि उपस्थित हो, तो उत्साह पुर्वक श्रीरामनाम जप करनेसे थोड़े ही समय में शान्त हो जाते हैं।
When one is troubled by the astrological influence of mine then he should chant the divine name of Shri Rama with great enthusiasm and as a result all the troubles would disappear in a short while.)

- शनिदेव , शनैश्चर स्मृति.
Shani deva, Shanaishchara smriti.

श्रीहनुमानजी के बारह नाम एवं पंचमुखी श्रीहनुमान मन्त्र

श्रीरामचन्द्र भोग आरती

Tuesday, October 11, 2016

जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं

प्रस्तुत है जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी द्वारा सुसज्जित की गई उत्तरकाण्ड की एक राम स्तुति जिसे भगवान शंकर तब गाते हैं, जब रावण के वध के बाद श्री राम अयोध्या लौट रहे हैं:
 
* जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो॥1॥
भावार्थ:-हे राम! हे रमारमण (लक्ष्मीकांत)! हे जन्म-मरण के संतापका नाश करने वाले! आपकी जय हो, आवागमन के भय से व्याकुल  इस सेवक की रक्षा कीजिए। हे अवधपति! हे देवताओं के स्वामी! हे  रमापति! हे विभो! मैं शरणागत आपसे यही माँगता हूँ कि हे प्रभो! मेरी रक्षा कीजिए॥1॥
 
* दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥
भावार्थ:-हे दस सिर और बीस भुजाओं वाले रावण का विनाशकरके पृथ्वी के सब महान्‌ रोगों (कष्टों) को दूर करने वाले श्रीरामजी! राक्षस समूह रूपी जो पतंगे थे, वे सब आपके बाण रूपीअग्नि के प्रचण्ड तेज से भस्म हो गए॥2॥
 
* महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं।
मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी॥3॥
भावार्थ:-आप पृथ्वी मंडल के अत्यंत सुंदर आभूषण हैं, आप श्रेष्ठबाण, धनुष और तरकस धारण किए हुए हैं। महान्‌ मद, मोह औरममता रूपी रात्रि के अंधकार समूह के नाश करने के लिए आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं॥3॥
 
* मनजात किरात निपात किए। मृग लोग कुभोग सरेन हिए॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूलि परे॥4॥
भावार्थ:-कामदेव रूपी भील ने मनुष्य रूपी हिरनों के हृदय में कुभोग रूपी बाण मारकर उन्हें गिरा दिया है। हे नाथ! हे (पाप-ताप काहरण करने वाले) हरे ! उसे मारकर विषय रूपी वन में भूल पड़े हुए इन पामर अनाथ जीवों की रक्षा कीजिए॥4॥
 
*बहु रोग बियोगन्हि लोग हए। भवदंघ्रि निरादर के फल ए॥
भव सिंधु अगाध परे नर ते। पद पंकज प्रेम न जे करते॥5॥
भावार्थ:-लोग बहुत से रोगों और वियोगों (दुःखों) से मारे हुए हैं। येसब आपके चरणों के निरादर के फल हैं। जो मनुष्य आपके चरणकमलों में प्रेम नहीं करते, वे अथाह भवसागर में पड़े हैं॥5॥
 
* अति दीन मलीन दुखी नितहीं। जिन्ह कें पद पंकज प्रीति नहीं॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें। प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें॥6॥
भावार्थ:-जिन्हें आपके चरणकमलों में प्रीति नहीं है वे नित्य हीअत्यंत दीन, मलिन (उदास) और दुःखी रहते हैं और जिन्हें आपकी लीला कथा का आधार है, उनको संत और भगवान्‌ सदा प्रिय लगने लगते हैं॥6॥
 
* नहिं राग न लोभ न मान सदा। तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि त्यागत जोग भरोस सदा॥7॥
भावार्थ:-उनमें न राग (आसक्ति) है, न लोभ, न मान है, न मद।उनको संपत्ति सुख और विपत्ति (दुःख) समान है। इसी से मुनि लोगयोग (साधन) का भरोसा सदा के लिए त्याग देते हैं और प्रसन्नता के साथ आपके सेवक बन जाते हैं॥7॥
 
*करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ। पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ॥
सम मानि निरादर आदरही। सब संतु सुखी बिचरंति मही॥8॥
भावार्थ:-वे प्रेमपूर्वक नियम लेकर निरंतर शुद्ध हृदय से आपके चरणकमलों की सेवा करते रहते हैं और निरादर और आदर कोसमान मानकर वे सब संत सुखी होकर पृथ्वी पर विचरते हैं॥8॥
 
* मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुबीर महा रनधीर अजे॥
तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी॥9॥
भावार्थ:-हे मुनियों के मन रूपी कमल के भ्रमर! हे महान्‌ रणधीर एवं  अजेय श्री रघुवीर! मैं आपको भजता हूँ (आपकी शरण ग्रहण करता हूँ) हे हरि! आपका नाम जपता हूँ और आपको नमस्कार करता हूँ। आप जन्म-मरण रूपी रोग की महान्‌ औषध और अभिमान के शत्रु हैं॥9॥
 
* गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं। महिपाल बिलोकय दीन जनं॥10॥
भावार्थ:-आप गुण, शील और कृपा के परम स्थान हैं। आपलक्ष्मीपति हैं, मैं आपको निरंतर प्रणाम करता हूँ। हे रघुनन्दन! (आप जन्म-मरण, सुख-दुःख, राग-द्वेषादि) द्वंद्व समूहों का नाश कीजिए।हे पृथ्वी का पालन करने वाले राजन्‌। इस दीन जन की ओर भीदृष्टि डालिए॥10॥
दोहा :
 
*बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥14 क॥
भावार्थ:-मैं आपसे बार-बार यही वरदान माँगता हूँ कि मुझे आपके चरणकमलों की अचल भक्ति और आपके भक्तों का सत्संग सदा प्राप्त हो। हे लक्ष्मीपते! हर्षित होकर मुझे यही दीजिए॥
 
‪https://www.youtube.com/watch?v=tearOMjBIuY

Ten bad qualities

Celebrate Dasha Hara by removing ten bad qualities 
*Ahankara* (Ego)
*Amanavta* (Cruelty)
*Anyaaya* (Injustice)
*Kama vasana* (Lust)
*Krodha* (Anger)
*Lobha* (Greed)
*Mada* (Over Pride)
*Matsara* (Jealousy)
*Moha* (Attachment)
*Swartha* (Selfishness)

Interpretation of Ramayan



Ram is your soul. Sita is your heart. Ravan is your mind that steals your heart from your soul. Lakshman is your consciousness, always with you and active on your behalf. Hanuman is your intuition and courage that helps retrieve your heart to re-animate your soul.

जय दशरथ कुल कुमुद सुधाकर


रावनारि सुखरुप भूपबर।
 जय दशरथ कुल कुमुद सुधाकर॥
Ravanari sukha-rupa bhupabar.
Jaya Dashrath kula kumuda sudhakar..

(हे रावणके शत्रु! हे सुखद स्वरुप राजाओं में श्रेष्ठ! हे दशरथ कुलरुप कुमुदको विकसित करने के लिए श्रीरामचन्द्रजी! आप की जय हो।
Oh Enemy of Ravana! Oh Best amongst noble Kings!  Moon to the lotus like lineage of Dashratha – Shri Ramchandra, all glories to you.)

बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता



सन्दर्भ:
सुन्दरकाण्ड में गोस्वामी जी लिखते हैं कि जब सीताजी की खोज में निकले हनुमान जी की भेंट विभीषण जी से होती है, तब विभीषण जी कहते हैं:

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥सुन्दरकाण्ड 7.4॥
हे हनुमान्‌! अब मुझे विश्वास हो गया कि श्री रामजी की मुझ पर कृपा है, क्योंकि हरि की कृपा के बिना संत नहीं मिलते। 

बालकाण्ड के आरम्भ में गोस्वामी जी संतों की वंदना करते हैं, और सत्संग की महिमा के बारे में लिखते हैं कि:

* मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥बालकाण्ड 3.5॥
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥बालकाण्ड 3.6॥
भावार्थ:-जिसने जिस समय जहाँ कहीं भी जिस किसी यत्न से बुद्धि, कीर्ति, सद्गति, विभूति (ऐश्वर्य) और भलाई पाई है, सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है। 

* बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥3.7॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥3.8॥
भावार्थ:-सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री रामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि (प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है। 

* सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥3.9॥
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥3.10॥
भावार्थ:-दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है), किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात्‌ जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।)। 


उत्तरकाण्ड में गोस्वामी जी लिखते हैं कि भगवान शंकर पार्वती जी को गरुड़ जी और काकभुषुण्डि जी के प्रश्नोत्तर के बारे में बताते हैं और कहते हैं:

गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन।
बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान।।125(ख)।।

भावार्थ:-हे गिरिजे! संत समागम के समान दूसरा कोई लाभ नहीं है। पर वह (संत समागम) श्री हरि की कृपा के बिना नहीं हो सकता, ऐसा वेद और पुराण गाते हैं।

राम कथा सुरधेनु सम, सेवत सब सुख दानि



संदर्भ:
बालकाण्ड में गोस्वामी जी विस्तार में लिखते हैं कि किस प्रकार सती जी का दूसरा जन्म हिमवान और मैना जी की पुत्री पार्वती के रुप में हुआ और उनका फिर से भगवान शंकर से विवाह हुआ. विवाहोपरांत वे शिवजी से निवेदन करती हैं कि उन्हें रामकथा सुनाए. तब वे कहते हैं:


राम कथा सुरधेनु सम, सेवत सब सुख दानि |

सतसमाज सुरलोक सब, को न सुनै अस जानि|| बालकाण्ड (113)

भावार्थ:
श्री रामचन्द्रजी की कथा कामधेनु के समान सेवा करने से सब सुखों को देने वाली है और सत्पुरुषों के समाज ही सब देवताओं के लोक हैं, ऐसा जानकर इसे कौन न सुनेगा!॥

रामकथा सुन्दर कर तारी |
 संसय बिहग उड़ावनिहारी || बालकाण्ड (114.1)
भावार्थ:
श्री रामचन्द्रजी की कथा हाथ से बजने वाली सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है।

सम्पुट


यहाँ कुछ प्रचलित चौपाईयाँ दी गई हैं, जिन्हें सम्पुट बनाकर रामायण या सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए। कौन किस सम्पुट को चुनता है, वो उसके मनोरथ पर निर्भर होता है.

8.
मनोरथ: बहुत दिनों से रुके हुए किसी कार्य को पूरा करने के लिए, एवं विजय प्राप्ति हेतु,
चौपाई: रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता अनुज सहित प्रभु आवत ।।

31.
मनोरथ: श्रीश्रीसीताराम के चरणकमलों में भक्ति को दृढ़ करने के लिए
चौपाई:  सीता राम चरन रति मोरे। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे॥

32.
मनोरथ: किसी कठिन परिस्थिति से निकलने के लिए
चौपाई:  कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥किष्किन्धाकाण्ड 30.5||
सन्दर्भकिष्किन्धाकाण्ड में सीता को खोजने के लिए प्रेरित करते हुए ऋक्षराज जाम्बवान्‌ श्री हनुमानजी से कहते हैं
भावार्थ: जगत्‌ में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे ताततुमसे  हो सके।

श्री रामचरितमानस की प्रशंसा


गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित श्री गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशक के निवेदन से साभार उद्धृत:

दुर्गा सप्तशती श्रीरामचरितमानस में

कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ चाह कर भी, समय अभाव अथवा संस्कृत के ज्ञान की कमी के कारण नहीं कर पाते हैं। उनके लिए कलिपावनावतार युगद्रष्टा गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में चौपाई और दोहे में समाहित किया है।

 

जय जय जय गिरिराज किशोरी। जय महेश मुख चंद्र चकोरी॥

जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥

नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव बेद नहिं जाना॥

भव भव विभव पराभव कारिनि। बिश्व बिमोहनि स्वबश बिहारिनि॥

 

दो०-पतिदेवता सुतीय महँ, मातु प्रथम तव रेख।

महिमा अमित सकहिं कहि, सहस शारदा शेष॥

 

सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनि त्रिपुरारि पियारी॥

देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥

सीता राम चरन रति मोरे

सीता राम चरन रति मोरे। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे॥


आपके अनुग्रह से मेरे मन में श्रीसीताराम जी के श्रीचरणों की भक्ति दिन-दिन अनुकूलता से बढ़ती रहे।

जनक सुता जग जननी जानकी

जनक सुता जग जननी जानकी ,अतिसय प्रिय करूणा निधान की |
ताके जुग पद कमल मनाऊँ,
जासु कृपा निर्मल मति पावऊँ |

कलियुग केवल नाम आधारा - सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा

कलियुग केवल नाम आधारा - सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा !

अर्थात्, कलियुग मैं प्रभु का नाम वो आधार कॉर्ड है जिसके प्राप्त कर लेने से, जिसका स्मरण करने से, आप भव सागर से पार होने के लिए पास्पोर्ट वीज़ा स्वतः ही प्राप्त कर लेते हैं। 

राम करे सो होय


श्री राम का पहाड़ा !!

श्री राम का पहाड़ा !!  

*अ से अनार,आ से आम।*
मिलकर बोलो जय श्रीराम।।*

*छोटी इ से इमली बड़ी ई से ईख।*
रामायण सिखाती ,अच्छी- सीख।।*

*छोटे उ से उल्लू बड़े ऊ से ऊँट।*
राम नाम का भरलो घूंट।।*

*ए से एड़ी ऐ से ऐनक।*
हनुमानजी श्रीराम के सेवक।*

*ओ से ओखली ,औ से औरत।*
राम नाम सबसे बड़ी दौलत।।*

*अं से अंगूर ,अ; रहा खाली। 
राम नाम हर ताले की ताली।।*

*भक्तों बजाओ ,जोर से ताली।*
भर जाएगी झोली खाली।।*
👏👏👏👏👏👏👏👏👏
🙏रामराम बनती है🙏