Saturday, October 29, 2016
धनद कोटि शत सम धनवाना। माया कोटि प्रपंच निधाना।।
Monday, October 17, 2016
बिनु सतसंग बिबेक न होई।
Friday, October 14, 2016
Namami Bhakta Vatsalam
Wednesday, October 12, 2016
शनि बाधा से मुक्ति -
Tuesday, October 11, 2016
जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं
Ten bad qualities
Interpretation of Ramayan
जय दशरथ कुल कुमुद सुधाकर
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता
राम कथा सुरधेनु सम, सेवत सब सुख दानि
सम्पुट
मनोरथ: बहुत दिनों से रुके हुए किसी कार्य को पूरा करने के लिए, एवं विजय प्राप्ति हेतु,
चौपाई: रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता अनुज सहित प्रभु आवत ।।
मनोरथ: श्रीश्रीसीताराम के चरणकमलों में भक्ति को दृढ़ करने के लिए
चौपाई: सीता राम चरन रति मोरे। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे॥
मनोरथ: किसी कठिन परिस्थिति से निकलने के लिए
चौपाई: कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥किष्किन्धाकाण्ड 30.5||
सन्दर्भ: किष्किन्धाकाण्ड में सीता को खोजने के लिए प्रेरित करते हुए ऋक्षराज जाम्बवान् श्री हनुमानजी से कहते हैं
श्री रामचरितमानस की प्रशंसा
गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित श्री गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशक के निवेदन से साभार उद्धृत:
दुर्गा सप्तशती श्रीरामचरितमानस में
कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ चाह कर भी, समय अभाव अथवा संस्कृत के ज्ञान की कमी के कारण नहीं कर पाते हैं। उनके लिए कलिपावनावतार युगद्रष्टा गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में ६ चौपाई और १ दोहे में समाहित किया है।
जय जय जय गिरिराज किशोरी। जय महेश मुख चंद्र चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव बेद नहिं जाना॥
भव भव विभव पराभव कारिनि। बिश्व बिमोहनि स्वबश बिहारिनि॥
दो०-पतिदेवता सुतीय महँ, मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस शारदा शेष॥
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनि त्रिपुरारि पियारी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
सीता राम चरन रति मोरे
सीता राम चरन रति मोरे। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे॥
आपके अनुग्रह से मेरे मन में श्रीसीताराम जी के श्रीचरणों की भक्ति दिन-दिन अनुकूलता से बढ़ती रहे।