2/20/2017
राम सच्चिदानंद दिनेशा।
नहिं तहँ मोह निशा लवलेशा॥
सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीराम जी शाश्वत सूर्य हैं। वहाँ मोहरूप रात्रि का लव-लेशमात्र भी नहीं है अर्थात् जैसे सूर्य के समक्ष रात्रि का छोटा सा भी अंश टिक नहीं सकता, उसी प्रकार भगवान् श्रीराम के समक्ष मोह का लघुत्तम अंश भी नहीं रह सकता।
2/13/2017
रहति न प्रभु चित चूक किए की।
करत सुरति शत बार हिए की॥
प्रभु श्रीराम के मन में भक्त के चूक करने की बात नहीं रहती। वे तो हृदय की ही परिस्थितियों का सैकड़ो बार स्मरण करते हैं।
2/6/2017
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा।
मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
श्रीरघुनाथ प्रातःकाल अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त में उठकर माता-पिता एवं गुरुदेव को मस्तक नवाकर प्रणाम करते हैं।
1/30/2017
नाना भाँति राम अवतारा।
रामायन शत कोटि अपारा॥
श्रीराम जी के अवतार अनेक प्रकार के हैं और वाल्मीकि जी द्वारा सौ करोड़ रामायण बनायी गयीं उनके अतिरिक्त अन्य मुनियों द्वारा भी अनेक रामायण बनायी गयी हैं।
1/23/2017
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं।
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥
संसार में कोई भी ऐसा नहीं जन्मा, जिसे प्रभुता पाकर मद नहीं हुआ हो।
1/16/2017
मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई।
भजत कृपा करिहैं रघुराई॥
मन, कर्म और वचन से चतुरता छोड़कर भजन करने से रघुकुल के राजा श्रीराम कृपा करेंगे ही।
1/9/2017
जेहि बिधि होइ नाथ हित मोरा।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
हे नाथ! जिस प्रकार से मेरा हित हो आप वह शीघ्र कीजिये। मैं आपका दास हूँ।
1/9/2016
जेहि बिधि नाथ होई हित मोरा।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
हे नाथ! जिस प्रकार से मेरा हित हो आप वह शीघ्र कीजिये। मैं आपका दास हूँ।
1/2/2017
सब कर परम प्रकाशक जोई।
राम अनादि अवधपति सोई॥
जीवात्मा से लेकर विषयपर्यन्त सभी की चेतना एक-दूसरे के आधीन है, केवल भगवान् श्रीराम की चेतना पराधीन नही स्वतःसिद्ध स्वाधीन है।
12/26/2016
जगत प्रकाश्य प्रकाशक रामू।
मायाधीश ग्यान गुन धामू॥
यह चिदचिदात्मक् जगत् प्रकाश्य है और भगवान् श्रीराम उसके प्रकाशक हैं। वे माया के अधिपति तथा ज्ञान एवं कल्याण गुणगणों के धाम हैं।
12/19/2016
होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै शाखा॥
वही होगा जो श्रीराम ने रच कर रखा है। इसमें कौन तर्क करके नाना प्रकार के विचारों की शाखा बढ़ाये।
12/12/2016
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
श्रीरामचन्द्र जी के सुहावने चरित्र करोड़ों कल्प पर्यन्त नहीं गाये जा सकते।
12/5/2016
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता॥
श्रीहरि भगवान् श्रीराम अनन्त हैं और उनकी कथाएँ भी अनन्त हैं। अनन्त श्रीराम की अनन्त कथाओं को सभी सन्तगण बहुत प्रकार से कहते और सुनते हैं।
11/28/2016
श्रीगुरुपद नख मनिगन जोती।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हिय होती॥
मैं श्रीगुरुदेव के श्रीचरण के नखरूप मणिगणों की ज्योति का स्मरण करता हूँ, जिसके स्मरणमात्र से हृदय में दिव्यदृष्टि उत्पन्न हो जाती है, जिसका सुन्दर प्रकाश मोहरूप अंधकार को नष्ट कर देता है और अशु अर्थात् प्राणों को प्रकाशित कर देता है।
11/21/2016
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
मैं श्रीगुरुदेव के श्रीचरणकमल की धूलरूप पराग का वन्दन करता हूँ, जो सुन्दर रुचिरूप सुगन्ध तथा अनुपम अनुरागरूप मकरंद से पूर्ण है।
11/14/2016
अति प्रचंड रघुपति कै माया।
जेहि न मोह अस को जग जाया॥
रघुकुल के स्वामी भगवान् श्रीराम की माया अत्यन्त प्रचण्ड अर्थात् बहुत भयंकर और बहुत ही बलशालिनी है, संसार में ऐसा कौन जन्मा है, जिसे यह नहीं मोहित कर देती?
11/7/2016
सतसंगति मुद मंगलमूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥
सन्त की संगति प्रसन्नता और मंगल की मूल है, उसकी सिद्धि अर्थात् प्राप्ति फल है और सभी साधन पुष्प हैं।
10/31/2016
शठ सुधरहिं सतसंगति पाई।
पारस परसि कुधातु सुहाई॥
शठ भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, क्योंकि पारस यानी स्पार्श मणि का स्पर्श करके कुधातु अर्थात् लोहा भी सुहावनी धातु अर्थात् सोना बन जाता है।
10/24/2016
रामकथा सुंदर कर तारी।
संशय बिहग उड़ावनहारी॥
श्रीरामकथा अत्यन्त सुन्दर हाथ की ताली है, जो संशयरूप पक्षी को उड़ानेवाली है अर्थात् जैसे ताली बजाने से पक्षी उड़ जाते हैं, उसी प्रकार श्रीरामकथा से संशय समाप्त हो जाता है।
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